Sunday, October 20, 2024

Hoi varat katha

यह व्रत कार्तिक लगते ही अष्टमी को किया जाता है। जिस वार को दीपावली होती है, अहाई आठें उससे ठीक सात दिन पूर्व उसी वार को पड़ती है। इस व्रत को वे स्त्रियाँ ही करती हैं जिनके सन्तान होती हैं। बच्चों की माँ दिन भर व्रत रखे। सायंकाल दीवार पर अष्ट कोष्ठक की अहोई की पुतली रंग भर कर बनाएँ। उस पुतली के पास सेई (स्याऊ) तथा सेई के बच्चों का चित्र भी बनायें या छपी हुई अहोई अष्टमी का चित्र मंगवाकर दीवार पर लगाएं तथा पूजन कर सूर्यास्त के बाद अर्थात् तारे निकलने पर अहोई माता • की पूजा करने से पहले पृथ्वी को पवित्र करके चौक पूज कर, एक लोटा जल भरकर एक पटले पर कलश की भाँति रखकर पूजा करें। अहोई माता का पूजन करके माताएँ कहानी सुनें। पूजा के लिए माताएँ पहले में एक चाँदी की अहोई बनवायें जिसे स्याऊ कहते हैं और उसमें चाँदी के दो दाने (मोती डलवा लें) जिस प्रकार गले में पहनने के हार में पैंडिल लगा होता है उसी की भाँति चाँदी की अहोई बलवा लें और डोरें में चाँदी के दाने डलवा लें। फिर अहोई की रोली, चावल, दूध व भात से पूजा करें। जल से भरे लोटे पर सतिया बना लें एक कटोरी में हलवा तथा रूपये (बायना) निकाल कर रख लें और सात दाने गेहूँ के लेकर कहानी सुने। कहानी सुनने के बाद अहोई (स्याऊ की माला) गले में पहन लें। जो बायना निकालकर रखा था, उसे सासू जी के पांव लगकर श्रद्धा पूर्वक उन्हें दे देवें। इसके बाद चन्द्रमा को अर्घ्य देकर भोजन करें। दीवाली के बाद किसी शुभ दिन अहोई को गले से उतारकर उसका गुड़ से भोग लगायें और जान के छींटे देकर मस्तक इझुकाकर रख दें। जितने बेटे हैं उतनी बार तथा जितने बेटों का विवाह हो गया हो उतनी बार चाँदी के 2-2 दाने अहोई में डालती जावें, ऐसा करने से अहोई माता प्रसन्न हो बच्चों की दीर्घायु करके घर में नित नये-नये मंगल करती रहती हैं। इस दिन पंडितों को पेठा दान करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है। अहोई का उजमन जिस स्त्री को बेटा हुआ हो अथवा बेटे का विवाह हुआ हो तो उसे अहोई माता का उजयन करना चाहिए। एक बाली में सात जगह चार-चार पूड़ियाँ रखकर उन पर थोड़ा 2 हलवा रखें। इसके साथ साड़ी 3 ब्लाउज उस पर सामर्थ्यानुसार रूपये रखकर बाली के चारों ओर हाथ फेरकर श्रद्धापूर्वक सासूजी के पांव लगाकर, वह सभी सामान सासूजी को दे देखें। तीयल तथा रूपये सासूजी अपने पास रख लें तथा हलवा पूरी व बायना बॉट दें। बहिन बेटी के यहाँ भी बायना भेजना चाहिए। अहोई माता की कहानी एक साहू‌कार था जिसके सात बेटे और सात बहुाएँ थीं। दिवाली से पहले कार्तिक बदी की अष्टमी को 32. सातों बहुएँ अपनी इकलौती ननद के साथ जंगल में जाकर खदान में मि‌ट्टी खोद रही थीं। वहाँ पर स्याहु की मांद थी। मि‌ट्टी खोदते समय ननद के हाथ से स्याहु का बच्या मर गया। इससे स्वाहू माता बहुत नाराज हो गई और बोली- मैं तेरी कोख बापूँगी। तब ननद अपनी सातों भाधियों से बोली- तुम में से कोई अपनी कोख बंधया लो। सभी भाभियों ने अपनी कोख बंधवाने से इन्कार कर दिया। परन्तु छोटी भाभी सोचने लगी कि अगर मैंने अपनी कोख नहीं बंधवाई तो सासू जी नाराज होंगी। यह सोचकर ननद के बदले में छोटी भाभी ने अपनी कोख बंधवा ली। अब इसके बाद उसको जो बच्चा होता वह सात दिन का होकर मर जाता। एक दिन उसने पंडित को बुलाकर पूछा- मेरी संतान सातवें दिन क्यों मर जाती है? तब पंडित ने कहा-तुम मुरही गाय की सेवा करो। सुरही गाय स्याहू माता की भायली है। । वह तेरी कोख खुलवा देगी तब तेरा बच्चा जिए‌गा। अब वह बहुत जाल्दी उठकर चुपचाप सुरही गाय के नीचे साफ-सफाई कर आती। सुरही गाय ने सोचा रोज उठकर कौन मेरी सेवा कर रहा है? सो आज देखूँगी। गऊ माता खूब सबरे उठी। क्या देखती हैं कि साहूकार के बेटे की बहु उसके नीचे साफ-सफाई कर रही है। गऊ माता उससे बोली- क्या मांगती है? साहूकार की बहु बोली- स्याहू माता तुम्हारी पायली है और उसने ॐ मेरी कोख बांधा रखी है। सो मेरी कोख खुलवा दो। गऊ माता ने कहा- अच्छा। अप तो गऊ माता समुद्र पार साहू‌कार की बहु को अपनी भापली के पास लेकर चली। रास्ते में कड़ी धूप थी। मो वह दोनों एक पेड़ के नीचे बैठ गई। थोड़ी देर में एक साँप आया। उसी पेड़ पर गरूड़ पंखनी का एक बच्चा था। सांप उसको डसने लगा। तब साहू‌कार की बहू ने साँप मारकर बाल के नीचे दबा दिया और बच्चे को बचा लिया। थोड़ी देर में गरूड़ पंखनी आई तो वहाँ खून देखकर साहूकार की बहू को चोंच मारने लगी। तब साहूकार की बहू बोली- मैंने तेरे बच्चे को नहीं मारा बल्कि साँप तेरे बच्चे के करीब आया था। मैंने तो उससे तो बच्चे को रक्षा की है। यह सुनकर गरूड़ पंखनी बोली मांग तू क्या मांगती है? वह बोली- सात समुद्र पार स्याहू माता रहती हैं। हमें तू उसके पास पहुंचा दे। तथ गरूड़ पंछनी ने दोनों को अपनी पीठ पर बैठाकर स्याहू माता के पास पहुंचा दिया। स्याहू माता उनको देखकर बोली- आ बहन बहुत दिनों में आई है। फिर कहने लगी बहन। मेरे सिर में जूए पड़ गई हैं। तब सुरही के कहने पर साहूकार की बहु ने उसकी सारी जूए निकाल दीं। इस पर स्याहू माता प्रसन्न होकर बोली तूने मेरे सिर में बहुत सलाई घेरी हैं इसलिए तेरे सात बेटे और सात बहु होंगी वह बोली- मेरे तो एक भी बेटा नहीं है सात बेटे कहाँ से होंगे? स्याहू माता बोली वचन दिया है, वचन से फिरूं तो धोबी की कुन्ड पर कंकरी होऊँ। तब साहू‌कार की बहू बोली- मेरी कोख तो तुम्हारे पास बंद पड़ी है। यह सुन स्याहू माता बोली तूने मुझे ठग लिया। जा तेरे घर पर तुझे सात बहुएँ मिलेंगी। तू जाकर उजमन करियों, सात अहोई बनाकर सात कढ़ाई करियो। वह लौटकर घर आई तो वहाँ देखा कि सात बेटे, सात बहु बैठे हैं। वह खुश हो गई। । उसने सात अहोई बनाई, सात उजमन किए, और सात कढ़ाई करीं। शाम के समय जैठानियाँ आपस में कहने लगीं कि जल्दी-जल्दी घोक पूजा कर लों कहीं छोटी बच्चों को याद करके न रोने लगे। थोड़ी देर में उन्होंने अपने बच्चों से कहा- अपनी चाची के घर जाकर देख आओ कि आज वह अभी तक रोई क्यों नहीं? बच्चों ने आकर कहा- चाची तो कुछ मांड रही है। खूब उजमन हो रहा है। यह सुनते ही जेठानियों दौड़ी-दौड़ी दौड़ी दौड़ी वहाँ आई और आकर कहने लगीं कि तूने कोख कैसे खुलवाई? वह बोली- तुमने तो कोख तो कोख बंधवाई नहीं थी। सो मैंने कोख बंधवा ली थी। अब स्याहू माता ने कृपा करके मेरी कोख खोल दी है। हे स्याहू माता। जिस प्रकार उस साहूकार की बहू की कोख खोली उसी प्रकार हमारी भी खोलियो। एक कटोरी में गेहूँ के दाने लेकर कहानी सुनें। (इस दिन मिट्टी में हाथ नहीं डालना चाहिए) आरती श्री अहोई माता की जय अहोई माता मईया जय अहोई माता। तुमको निशिदिन सेवत हर विष्णु विधाता।। जय अहोई माता मईया जय अहोई माता। ब्रह्माणी रूद्राणी कमला तू ही है जगमाता। सूर्य चन्द्रमा घ्यावत नारद ऋषि गाता। जय अहोई माता मईया जय अहोई माता। माता रूप निरंजन सुख सम्पत्ति दाता। जो कोई तुमको ध्यावत नित मंगल आता। जय अहोई माता मईया जय अहोई माता। तू ही है पाताल बसंती, तू ही शुमदाता। कर्मप्रभाव प्रकाशक जगनिधि से त्राता। जय अहोई माता मईया जय अहोई माता। जिस घर थारो बासो वाही में गुण आता। कर न सके सोई करले मन नहीं घबराता। जय अहोई माता मईया जय अहोई माता। तुम बिन सुख न होवे पुत्र न कोई पाता। खान पान का वैभव तुम बिन नस जाता। जय अहोई माता मईया जय अहोई माता। शुम गुण सुन्दर मुक्ता क्षीरनिधि जाता। रत्न चतुर्दश तोक कोई नहीं पाता। जय अहोई माता मईया जय अहोई माता। श्री अहोई माँ की आरती जो कोई गाता। उर उमंग अति उपजे पाप उतर जाता। जय अहोई माता मईया जय अहोई माता। श्री गणेश जी की आरती जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा। माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा ।। एक दन्त दयावन्त चार भुजाधारी। मस्तक सिंदूर सोहे, मूसे की सवारी ।। जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा। अँधन को आँख देत. कोदिन को काया। बाँड़ान को पुत्र देव, निर्धन को माया जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा। पान चढ़े फूल चढ़े और चढ़े मेवा। लड्डुअन का भोग लगे, सन्त करें सेवा जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा।. हार चढ़े फूल चढ़े और चढ़े मेवा। सूरदास शरण आये सुफल कीजै सेवा जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा। देवों के देव और पुत्र महादेव के। प्रथम पूज्य सर्व सेव्य दाता जन सेव्य के वेद पाश लिये हाथ अभय मुद्रा धारी। ज्ञान को भण्डार धन दाता सुख कारी दीनन की लाज राखो शम्भु-सुतवारी। कामना को पूरा करो, जग बलिहारी ।। जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा।